BHOPAL. सिर मुंडाते ही ओले पड़ना, ये कहावत अक्सर तब इस्तेमाल होती है जब कोई मुसीबत बिना वक्त दिए आ जाती है। लेकिन किसी को कोई कामयाबी मिल जाए उसके बाद ओले खाने की नौबत आ जाए तो उसे क्या कहेंगे। इस सिचुएशन के लिए कोई मुफीद कहावत मिले तो जरूर बताइएगा। फिलहाल मैं आपको ये बताता हूं कि प्रदेश की सियासत में ऐसा कौन है जिसे देखकर मुझे इस अजीब सी सिचुएशन की याद आई है। ये शख्स हैं जीतू पटवारी। जिन्हें मैंने आंदोलन करते हुए देखा है। मंदसौर गोली कांड के बाद पीड़ित किसान से मिलाने के लिए राहुल गांधी को, गुपचुप तरीके से बाइक पर लाते देखा है। और अब मैं विधानसभा चुनाव में हारे हुए जीतू पटवारी को देख रहा हूं। जिसका मुकाबला जीत के लिए कमर कस के खड़ी बीजेपी से है। जो लोकसभा चुनाव के लिए एक्शन मोड में आ चुकी है। खेतों में छुपते छुपाते जीतू पटवारी राहुल गांधी को मंदसौर तक ले आए थे। अब एक बार फिर उन्हें अपने वही बेधड़क, दिलेर और निडर अंदाज की परीक्षा फिर देनी है। क्योंकि जीतू पटवारी के पास समय बहुत कम है और परीक्षा बहुत बड़ी। इतने कम समय में जीतू पटवारी क्या कर पाएंगे।
छिंदवाड़ा पर मोदी लहर का असर नहीं हुआ
मैं बात कर रहा हूं लोकसभा चुनाव की। जनवरी माह सिर पर आ चुका है। एक जनवरी के साथ ही लोकसभा चुनाव का कांटा उल्टा घूमने लगेगा। समय तेज रफ्तार से घटने लगेगा और जीतू पटवारी की परीक्षा का वक्त भी नजदीक आने लगेगा। बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश की 28 सीटें जीतीं। सिर्फ एक सीट छिंदवाड़ा पर मोदी लहर का असर नहीं हुआ। अब बड़ी उम्मीद के साथ नेतृत्व परिवर्तन कर कांग्रेस ने जीतू पटवारी को कमान सौंपी है। अगर जीतू पटवारी कांग्रेस की एक सीट भी बचा लेते हैं तो ये उनके और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ी उपलब्धि होगा और एकाध सीट ऊपर ले आते हैं तो ये उनके लिए बोनस प्वाइंट की तरह काम करेगा। वो भी तब जब बीजेपी विधानसभा चुनाव के बाद सुस्ताने की जगह पूरी सक्रियता के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है। खासतौर से छिंदवाड़ा सीट पर बीजेपी 2023 की शुरुआत से ही एक्टिव है।
बीजेपी अलग स्ट्रेटजी पर काम कर रही है
बोनस इसलिए क्योंकि आज की बीजेपी से टकराना आसान नहीं है। बीजेपी ने हर चुनावी गणित को फेल कर मध्यप्रदेश में 163 सीटें जीती। अब लोकसभा चुनाव में पुरानी जीती हुई 28 सीटों के साथ ही छिंदवाड़ा की सीट पर भी नजर है। आमतौर पर कहने सुनने में यही आता है कि विधानसभा चुनाव से निपटने के बाद लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू की जाएगी, लेकिन बीजेपी इस मामले में अलग रफ्तार और अलग स्ट्रेटजी पर काम कर रही है। कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ को पटखनी देने के लिए बीजेपी ने बहुत पहले से तैयारी शुरू कर दी है। इस क्षेत्र में पीएम मोदी समेत अमित शाह के दौरे हो चुके हैं। बैठकों का दौर जारी है और गिरिराज सिंह जैसे हिंदूवादी चेहरे को छिंदवाड़ा का गढ़ बीजेपी की झोली में डालने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जो विधानसभा के चुनावी साल से ही छिंदवाड़ा में एक्टिव हो चुके थे। उन्हें छिंदवाड़ा में तैनात कर बीजेपी ने एक तीर से दो निशाने साधे। तत्कालीन कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ को बहुत आसानी से डिस्ट्रेक्ट कर दिया। चुनाव नजदीक आते-आते प्रदेश से ज्यादा कमलनाथ को छिंदवाड़ा की फिक्र करनी पड़ी और खुद वहीं से चुनाव भी लड़ना पड़ा। लोकसभा में भी उनके लिए हालात बेहतर होना मुमकिन नहीं है। मोदी की आंधी में बीजेपी पुरानी 28 सीटें जीतने के लिए आश्वस्त है और कांग्रेस को वो सीट बचाने के साथ संख्या बढ़ाने पर भी फोकस करना है।
सवाल ये है कि कांग्रेस कितनी तैयार
जीतू पटवारी, उमंग सिंगार और हेमंत कटारे जैसे ऊर्जावान नेताओं की मौजूदगी के बावजूद ये काम आसान नहीं है। क्योंकि बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के बाद सुस्ती को नहीं बल्कि, चुस्ती को चुना है। एक दौर में बीजेपी का नारा था भोजन बैठक और विश्राम, लेकिन नए दौर और नए चेहरों के साथ ये नारा बदल चुका है। बीजेपी अब भोजन, बैठक, नहीं विश्राम की तर्ज पर आगे बढ़ रही है। जिससे टकराने के लिए कांग्रेस ने अपने स्थापना समारोह में नारा दिया है। हैं तैयार हम, लेकिन सवाल ये है कि कांग्रेस कितनी तैयार। चुनाव खत्म होते ही बीजेपी का संगठन पूरी तरह एक्टिव हो चुका है। विधानसभा चुनाव की बंपर जीत के बाद राहत की सांस लेने की जगह बीजेपी जैसे युद्ध के अगले पड़ाव की ओर बढ़ चली है। जबकि कांग्रेस फिलहाल कुछ पुराने मुद्दों पर ही उलझी नजर आ रही है। सारी कवायद इस बात पर टिकी रह गई है कि बीजेपी की लाड़ली बहना योजना को फ्लॉप साबित किया जा सके, जबकि बीजेपी फिर बिंदुवार रणनीति के साथ मैदान संभालने को तैयार है।
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा बीजेपी का कद बढ़ाएगी
विधानसभा चुनाव में सांसदों को उतार कर बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की। अब यही फॉर्मूला राज्यसभा सांसदों पर लागू करने की तैयारी है जिसके तहत नामी और दिग्गज चेहरों को लोकसभा चुनाव में टिकट देकर मैदान में उतारा जा सकता है। ताकि वो अपने दम पर और अपनी मेहनत से चुनाव जीतने में जुट जाएं। ऐसा नहीं है कि लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी डरी हुई है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा बीजेपी का कद और बढ़ाएगी। इसके अलावा नरेंद्र मोदी की गारंटी पर लोगों का भरोसा भी बीजेपी के लिए जीत की कुंजी बना ही हुआ है। इसकी फिलहाल कांग्रेस तो क्या किसी विपक्षी दल के पास कोई काट नहीं है। ऐसे में बीजेपी को डर है ये कहना सही नहीं होगा, लेकिन ये जरूर कहा जा सकता है कि बीजेपी अलर्ट मोड पर है। चुनाव जीतने के बाद अलाली या ओवर कॉन्फिडेंस की जगह बीजेपी ने चुनावी तैयारियों में जुटे रहना जरूरी समझा। इसकी एक वजह और भी है। वो वजह है कांग्रेस का वोट बैंक। कांग्रेस के वोटबैंक पर नजर डालें तो उसमें ज्यादा गिरावट नहीं आई है।
बीजेपी किसी मोर्चे पर कोताही नहीं बरतना चाहती है
2009 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 11.9 करोड़ वोट मिले थे। इस चुनाव में कांग्रेस को 206 सीटें हासिल हुई थीं। इसी चुनाव में उसकी प्रतिद्वंद्वी बीजेपी को 7.8 करोड़ वोट मिले थे और उसे 116 सीट मिली थी। जिसके बाद 2009 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए ने सरकार बनाई थी। इसके पांच साल बाद 2014 में कांग्रेस का वोट पिछली बार के मुकाबले एक करोड़ नीचे खिसककर गया। पार्टी को देशभर में 10.6 करोड़ वोट मिले, लेकिन उसे बुरी तरह हार मिली और उसकी सीटें 44 पर सिमट गईं। वहीं बीजेपी को 17.1 करोड़ वोट मिले, लेकिन उसकी सीटें बढ़कर 282 हो गईं, जो बहुमत के आंकड़े 272 से ज्यादा थी। 2019 लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के वोटर बढ़कर 2009 के बराबर पहुंच गए, लेकिन सीटों की संख्या सिर्फ 8 बढ़ी और पार्टी को 52 लोकसभा सीट मिली। ध्यान देने वाली बात है कि 2009 के बराबर ही वोट पाने वाली कांग्रेस की सीटें 154 कम हो गईं। इसी चुनाव में बीजेपी को वोट 22.9 करोड़ मिले थे और उसने 303 सीटों पर कब्जा जमाया था। इसकी एक वजह ये रही कि बीजेपी के खाते में तीसरे मोर्चे के वोट शिफ्ट हो गए, लेकिन कांग्रेस का वोट बैंक न खिसकना और वोट बैंक बढ़ने का ट्रैंड बीजेपी को परेशान करता रहता है। यही वजह है कि मोदी फैक्टर के दमदार होने के बावजूद बीजेपी अलर्ट मोड पर ही काम कर रही है और किसी मोर्चे पर कोताही नहीं बरतना चाहती है।
जीतू पर प्रेशर जबरदस्त है और झेलने के लिए कोई साथ नहीं
बात करें मध्यप्रदेश की तो यहां भी बीजेपी के पास लंबी चौड़ी ब्रिगेड है। कसा हुआ संगठन है। बड़े चेहरे हैं। एंटी इंकंबेंसी को मतदाता खुद ही खारिज कर चुके हैं। अब तो श्रीराम का भी साथ है, जबकि कांग्रेस के पास यानी कि जीतू पटवारी के पास नया नया मौका है। उन्हें संगठन नए सिरे से तैयार करना है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के इशारों पर चल रही कांग्रेस को नए निर्देश समझाने हैं और फिर हारी हुई सीटों में से कुछ पर जीत दर्ज करना है। प्रेशर जबरदस्त है और झेलने के लिए कोई साथ नहीं है। ऐसे में इसे जीतू पटवारी का लिटमस टेस्ट कहना भी जल्दबाजी ही होगा, लेकिन देर करने का और वक्त लेने का वक्त भी जीतू पटवारी या कांग्रेस के पास नहीं है।